पांँच मानवीय मूल्य, सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा मनुष्य के भीतर स्वाभाविक रूप से मौजूद हैं। स्वामी ने समय-समय पर उनका अभ्यास करने और उन्हें हृदय में प्रकट करने पर जोर दिया है। पांँच मानवीय मूल्यों का अभ्यास एवं पालन करने के लिए, व्यक्ति को पहले मनुष्य के छह शत्रुओं (षडरिपुओं) को त्यागना होगा, जो कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर्य हैं। यही षडरिपु हमारे भीतर के पांँच मूल्यों को निगल जाते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए आत्म-विश्वास और ईश्वर में दृढ़ विश्वास सर्वोपरि है। यह आत्मविश्वास ही है जो हमारे जीवन का आधार है। एक बार जब नींव मजबूत हो जाती है, तो हमें आत्म-संतुष्टि और आत्म-बलिदान के लिए प्रयास करना होता है। दोनों का अभ्यास अंततः हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।
षडरिपु खंड के अंतर्गत छात्रों को कहानियाँ सुनाकर तथा दिन-प्रतिदिन के उदाहरण देकर समझाया जा सकता है जिससे छात्र विषय से संबंधित हो सकते हैं। छात्र उन उदाहरणों का वर्णन करके भी भाग ले सकते हैं जहाँ वे अपने जीवन में पाँच मानवीय मूल्यों में से किसी एक का अभ्यास कर सकते हैं।