तस्मादसक्तः सततं
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श्लोक
- तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
- असक्तो ह्याचरन्कर्म, परमाप्नोति पूरुषः
भावार्थ
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम निरंतर आसक्ति से रहित होकर कर्म करो। क्योंकि बिना आसक्ति के कार्य करता हुआ, अनासक्त व्यक्ति परमोच्च (श्रेष्ठतम) लक्ष्य को प्राप्त करता है। जीवन में यह सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य या उद्देश्य मनःशांति प्राप्त करना है।
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व्याख्या
तस्मात् | इसलिए |
---|---|
असक्त: | बिना आसक्ति के |
सततं | लगातार |
कार्यं | कर्त्तव्य |
कर्म | क्रिया |
समाचर | आचरण |
ह्या | निश्चित रूप से |
परम | सर्वोच्च |
प्राप्नोति | प्राप्त करता है |
पूरुषः | व्यक्ति |
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