अर्थमनर्थं भावय नित्यं
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श्लोक
- अर्थमनर्थं भावय नित्यं
- नास्ति ततः सुखलेश: सत्यम्।
- पुत्रादपि धनभाजां भीतिः
- सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥
भावार्थ
धन दुःख का मूल कारण है। यह सत्य जान लो कि धन से तनिक भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता। धनवान व्यक्ति को कभी-कभी अपने पुत्र से भी भय लगता है। यही स्थिति सर्वत्र दिखाई देती है।
व्याख्या
अर्थम् | धन |
---|---|
अनर्थम् | व्यर्थ |
भावय | मानो, समझो |
नित्यम् | हमेशा |
नास्ति | नहीं है |
तत: | उस से |
सुखलेश: | थोड़ा सा भी सुख |
सत्यम् | सत्य |
पुत्रादपि | पुत्र से भी |
धन | धन |
भाजां | प्राप्त करना |
भीति: | भय |
सर्वत्र | हर जगह |
एषा | यह |
विहिता | जानो |
रीति: | प्रक्रिया, रिवाज |
Overview
- Be the first student
- Language: English
- Duration: 10 weeks
- Skill level: Any level
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