पश्य मे पार्थ

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श्लोक
- पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्त्रशः।
- नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥
भावार्थ
अपने विराट विश्व रुप का दर्शन कराते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- ‘हे पार्थ (अर्जुन)! मेरे सैकड़ों तथा हजारों अलौकिक दिव्य स्वरुप देखो, जो अनेक रंग वाले तथा अनेक प्रकार की आकृति वाले हैं |’

व्याख्या
| पश्य | देखो |
|---|---|
| में | मेरे |
| रूपाणि | रूपों को |
| पार्थ | हे अर्जुन |
| शतश: | सैकड़ों |
| अथ | इसी समान |
| सहस्त्रशः | हजारों |
| नाना विधानी | भिन्न-भिन्न प्रकार की |
| दिव्यानि | दिव्य, दैवी, अलौकिक |
| नाना वर्णा कृतीनी | [नाना +वर्ण +आकृति ] विभिन्न रंग, आकार, आकृति, रूप| |
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