ब्रह्मार्पणं
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श्लोक
- ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम्
- ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ॥
भावार्थ
भोजन रुपी यज्ञ में अर्पण भी (अर्पण करने का साधन अर्थात् श्रुवा) ब्रह्म है, हवन की सामग्री (अर्थात् भोजन) भी ब्रह्म। ब्रह्मरुप अग्नि (जठराग्नि) में आहुति (ग्रास) देने वाला कर्ता भी ब्रह्मरुप है – आहुति देने की क्रिया भी ब्रह्म है। इस प्रकार ब्रह्म कर्म में स्थित पुरुष को प्राप्त होनेवाला फल भी ब्रह्म ही है।
व्याख्या
ब्रह्म | परमात्मा |
---|---|
अर्पणम् | अर्पित करता हूँ। |
हवि: | शुद्ध घी, आहुति भेंट |
ब्रह्माग्नौ | ब्रम्ह रूप अग्नि में |
ब्रम्हणा | ब्रम्ह द्वारा |
हुतम् | यज्ञ में स्वेच्छा से देना |
एवं | केवल; सिर्फ |
तेन | उसके द्वारा |
गन्तव्यम् | पहुँच जाएगा |
ब्रम्ह कर्म समाधिना | ब्रह्म क्रिया में संलग्न |
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