- फलों से लदें वृक्ष झुक जाते हैं। ताजे वाष्प कणों से युक्त बादल आकाश में नीचे होते हैं। उदात्त एवं श्रेष्ठ आत्माएँ धन दौलत का कभी गर्व नहीं करतीं। परोपकारी व्यक्तियों का तो यह स्वाभाविक गुण है।
- व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुरूप ही परिणाम प्राप्त होते हैं। मनुष्य रूप में विश्वेश्वर को भी बंदी बनना पड़ा था। क्योंकि पूर्व में एक बार उन्होंने महाबली को बंधक बनाया था। (वामन अवतार में भगवान विष्णु द्वारा महाबली को बंदी बनाया गया था) बाद में कृष्ण अवतार में माँ यशोदा ने भगवान को पत्थर से बाँधा था।
- दयायुक्त वचन बोलने में व्यय नहीं होता। उससे जिह्वा या होंठों पर छाले नहीं पडते हैं। वे वचन मूल्यवान नहीं होते परंतु महत्वपूर्ण काम को पूर्ण करने में सहायक होते हैं। वे दूसरे मनुष्य को भी अच्छा स्वभाव वाला बनाते हैं।
- जो बुराई हम दूसरों में देखते हैं, वह हमारे अंतस की बुराई की प्रतिच्छाया होती है। सच्चे इंसान के लिए संसार में कुछ भी बुरा अथवा पापमय नहीं है, क्योंकि वह अपने निर्मल एवं दिव्य प्रेम के कारण किसी में भी बुराई नहीं देखता। असल में निर्मल और बिना शर्त प्रेम करने वाले व्यक्ति के हृदय में परनिन्दा का कोई स्थान नहीं रहता है।
- अधिक बोलने वाला व्यक्ति बुद्धिमान नहीं कहा जाता। धैर्यवान, प्रेममय एवं घृणारहित मनुष्य ही बुद्धिमान कहलाता है।
- मनुष्य का वास्तविक कर्तव्य क्या है? सर्वप्रथम अपने माता-पिता की प्रेम, श्रद्धा व कृतज्ञता से सेवा करनी चाहिए। दूसरा “सत्यं वद् धर्मंचर” अर्थात् सत्य बोलो एवं सद् आचरण करो। जब भी कुछ क्षण खाली मिले, उससे जो भी भगवान का रूप आपको मन में हो उसका नामस्मरण करो। चौथा, दूसरोँ की बुराई करने में आनंद मत लो या दूसरों में दोष खोजने का प्रयास मत करो, और अंत में किसी भी प्रकार से दूसरों को दुःख मत पहुँचाओ।
- कोई भी इतना धनी नहीं होता कि उसे दूसरों की सहायता की आवश्यकता ही न पड़े। कोई भी इतना निर्धन नहीं होता कि बंधु-बाँधवों के काम न आ सके। विश्वास के साथ दूसरों से सहायता की याचना करना तथा दूसरों को दयालुता से सहायता पहुँचाना हमारी मूल प्रकृति है तथा मनुष्य होने के नाते यह हमारा कर्तव्य भी है।
- दयालुता पूर्ण वचन आत्मविश्वास उत्पन्न करते हैं, दयापूर्ण विचार गंभीरता उत्पन्न करते हैं, दया पूर्ण दान, प्रेम को जन्म देता है।
- प्रार्थना को विस्तृत करो। प्रार्थना युक्त रहो। हर बार की गयी प्रार्थना, यदि वह सच्चे मन से की गयी हो, तो तुम्हें नई अनुभूति, नया अर्थ, नया साहस एवं उत्साह प्रदान करेगी और तुम्हें अनुभव होगा कि प्रार्थना ही सच्ची शिक्षा है।
- भगवान तुम्हारी प्रार्थना की धारा- प्रवाहता की ओर ध्यान नहीं देते चाहे वह कितनी ही सुंदर क्यों न हो, न ही उसके नाप की ओर, कितनी लंबी वे क्यों न हो, न ही उसके गणित की ओर, गिनती में कितनी बार भी क्यों न हो, तुम्हारी प्रार्थना के तर्क कितने भी सुव्यवस्थित हों, उससे भगवान प्रभावित नहीं होते। वरन् भगवान प्रार्थना की सच्चाई से ही प्रभावित होते हैं।
- संसार की बड़ी एवं छोटी वस्तुओं को जो उत्कृष्ट प्रेम करता है वही सच्ची प्रार्थना करता है क्योंकि प्रिय प्रभु, जो हमें प्यार करते हैं उनका सृष्टा है, वह जड़, चेतन सबको समान रूप से प्यार करते हैं।
- प्रश्न: क्या हमें ईश्वर की प्रार्थना सस्वर करनी चाहिए ?
उत्तर: जिस किसी भी प्रकार से प्रभु की प्रार्थना करो वह निश्चय ही तुम्हें सुनेगा।
वह तो चींटी के पदचाप भी सुनता है। - प्रश्न: क्या प्रार्थना में कोई कार्य संपन्न क्षमता होती है?
उत्तर: हाँ! परंतु जब तुम्हारे मन एवं वचन में एकरूपता होगी तभी प्रार्थना का उत्तर मिलेगा और इच्छित वस्तु प्राप्त होगी। जो मनुष्य केवल वाणी से कहता है, कि हे प्रभु सभी कुछ आप हैं तथा सब कुछ आप का है, परंतु अंतस् में सोचता है कि सभी कुछ मेरा है, उसकी प्रार्थना कभी स्वीकार नहीं होगी। - प्रार्थना हृदय से उत्स्फूर्त होनी चाहिये, जहाँ ईश्वर का वास होता है, न कि मस्तिष्क से जहाँ सिद्धांत एवं सन्देह टकराते हैं।
- प्रार्थना ने मेरा जीवन बचाया है। प्रार्थना के बिना मैं बहुत समय पहले ही विक्षिप्त हो गया होता। मेरे हिस्से में वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में अत्यधिक कटु अनुभव आये, जिससे मैं अस्थायी रूप से निराशा की गर्त में फेंका गया था। यदि उस निराशा की गर्त से मैं मुक्ति पा सका हूँ तो वह सिर्फ प्रार्थना के कारण ही है।
- व्यक्तियों से वार्तालाप के समय जिन बातों में मतभिन्नता हो, उससे अपनी वार्ता आरंभ न करो। जिन बातों में आप सहमत हो, उन पर जोर देते हुए ही वार्ता प्रारंभ करो, तथा उन्हीं पर बल दो।
- पका हुआ फल वृक्ष से गिरकर भी बेकार नहीं जाता चाहे हमें उसका ज्ञान भी न हो। वह पृथ्वी माता को अपने बीज लौटा कर फिर उपजता है। प्रत्येक अच्छा आदमी भगवान का उपहार है तथा पथ प्रदर्शक है।
- शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए, प्रसन्न सुखद विचार जैसा कोई दूसरा चिकित्सक नहीं है।
- संसार एक दर्पण है, प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के चेहरे का प्रतिबिंब वापस लौटाता है। उसकी तरफ गुस्से से नाक भौं-चढ़ाकर देखो और वह आपकी ओर कड़वाहट से देखेगा। उस पर हँसों वह भी हँसता है, सौहार्द्रपूर्ण साथी होता है। साथी युवकों को सोचना है कि वे क्या चुनें?
रत्न
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