मन्मना भव
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श्लोक
- मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
- मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:॥
भावार्थ
श्री कृष्ण अर्जुन को निर्देश देते हैं कि, ‘तुम अपने मन को मुझमें स्थिर कर दो। मेरे भक्त बन जाओ अर्थात् मेरा चिंतन मनन करो। मेरे ही उपासक बनो। समर्पित भाव से मेरी पूजा करो। मुझे प्रणाम करो। इस प्रकार मुझसे एकात्म बोध करते हुए तुम मुझे ही प्राप्त होगे |’
व्याख्या
मन्मना भव | मन + मना + भव – मुझ पर मन स्थिर करने वाला हो |
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मद्भक्त: | मेरा भक्त, निरन्तर मुझे भजनेवाला |
मद्याजी | (मत् + याजी) – मुझे समर्पित होनेवाला, मेरा पूजन करनेवाला |
मां | मुझे |
नमस्कुरु | (नम: + कुरु) प्रणाम करो, नमन करो |
मामेवैष्यसि | माम् + एव + एष्यसि – मुझे ही केवल प्राप्त करोगे |
युक्त्वा | मिलकर, ऐक्य बोध करके |
एवं | इस पकार |
आत्मानम् | आत्मा को, तुम स्वयं |
मत्परायण: | मेरे शरण हुआ |
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