पुरुष: स पर: पार्थ

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श्लोक
- पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |
- यस्यान्त: स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ||
भावार्थ
हे पार्थ (अर्जुन), जिस परमात्मा के अंतर्गत सब प्राणी हैं, और जिस सच्चिदानंद परमात्मा से यह सारा जगत परिपूर्ण है, वह सनातन परमपुरुष अनन्य भक्ति से प्राप्त होता है|

व्याख्या
| पुरुषः | व्यक्ति |
|---|---|
| स | वह |
| पर: | सर्वोच्च, परम श्रेष्ठ |
| पार्थ | अर्जुन का एक नाम |
| भक्त्या | भकित से |
| लभ्य | प्राप्त होने योग्य |
| अनन्यया | अविभाजित |
| यस्य | जिसके |
| अंत: स्थानि | अंतर्गत |
| भूतानि | सभी प्राणी |
| येन | जिसके दूारा |
| सर्वम् | सर्व जगत |
| इदम् | यह |
| ततम् | परिपूर्ण है, व्याप्त है |
Overview
- Be the first student
- Language: English
- Duration: 10 weeks
- Skill level: Any level
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