सर्वधर्मान्परित्यज्य

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श्लोक
- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
- अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
भावार्थ
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, “तुम धर्म-अधर्म का विचार त्याग कर एक मात्र मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सब पापों से मुक्त कर दूँगा। चिंता मत करो |”

व्याख्या
| सर्वधर्मान् | सभी कर्त्तव्यों को, सभी उपायों को |
|---|---|
| परित्यज्य | छोड़कर |
| माम् | मुझे |
| एक | सिर्फ |
| शरणं | आश्रय |
| व्रज | आना, प्राप्त कर |
| अहं | मैं |
| त्वाम | तुम्हें |
| सर्वपापेभ्यो | संपूर्ण पापों से |
| मोक्षयिष्यामि | मुक्त कर दूँगा |
| मा | नहीं, मत |
| शुच: | शोक करना |
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