पत्रं पुष्पं
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श्लोक
- पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
- तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥
भावार्थ
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो भी भक्त मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल, भक्ति व प्रेम के साथ अर्पण करता है, उसे मैं स्वीकार करता हूँ | क्योंकि वह भक्तिभाव से, शुद्ध हृदय वाले द्वारा अर्पित किया हुआ है |
व्याख्या
पत्रं | पत्तियाँ |
---|---|
पुषपं | फूल |
फलं | फल |
तोयं | जल |
यो | जो |
मे | मेरे लिये |
भक्त्या | भक्ति भाव से, श्रद्धा से |
प्रयच्छति | अर्पण करता है |
तत् | वह (पत्ती, फूल, फल, जल) |
अहं | मैं स्वयं |
भक्त्युपहृतम् | भक्ति से अर्पण किया हुआ |
अश्नामि | स्वीकार करता हूँ |
प्रयतात्मनः | शुद्ध हृदय द्वारा अर्पित किया हुआ| |
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